India Pakistan Emotional Story
मां हिंदुस्तानी, बेटी पाकिस्तानी… अटारी बॉर्डर पर बंटते दिलों की चीख, जो कोई सुन न सका
(India-Pakistan Border Human Story | Attari Border Heartbreaking Moment)
अटारी बॉर्डर पर आज जो हुआ, उसे देखकर शायद पत्थर दिल भी पिघल जाता।
भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच एक मां और उसकी छोटी सी बच्ची के आंसुओं ने सरहद को भी नम कर दिया।
जहां एक ओर राजनीति गरज रही थी, वहीं दूसरी ओर एक मासूम बेटी अपनी मां का हाथ थामे गिड़गिड़ा रही थी –
“मां के बिना हम पाकिस्तान नहीं जाएंगे… चाहे कुछ भी हो जाए…”
ये वो लम्हा था, जब इंसानियत खुद शर्मिंदा हो गई थी।
मां के हाथ में भारतीय पासपोर्ट था, बेटी के पास पाकिस्तानी… और कानून के कागज़ों के आगे रिश्तों की बेबसी चीख रही थी।
पहलगाम से अटारी तक: आंसुओं का सफर
22 अप्रैल, पहलगाम। आतंकियों ने 26 मासूम जिंदगियों को एक झटके में छीन लिया।
इस खूनी वारदात के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़े फैसले लिए।
23 अप्रैल को विदेश मंत्रालय ने आदेश निकाला —
“27 अप्रैल तक सभी पाकिस्तानी नागरिक भारत छोड़ दें।”
आदेश आते ही, जो रिश्ते कभी मोहब्बत से जुड़े थे, आज मजबूरी के पाले में आ गए।
हजारों लोग अटारी बॉर्डर पर जमा हुए — कुछ उम्मीद लेकर, कुछ बेबसी लेकर, और कुछ बस एक आखिरी बार अपनों को गले लगाने की आस लेकर।
शनीजा और उसकी बेटी की टूटती दुनिया
शनीजा खान (बदला हुआ नाम), जोधपुर (राजस्थान) की रहने वाली हैं।
करीब एक दशक पहले शादी कर पाकिस्तान के कराची चली गई थीं।
हाल ही में अपनी बीमार मां से मिलने दिल्ली आई थीं, लेकिन नियति ने ऐसा चक्र चलाया कि अब अपने बच्चों से भी बिछड़ने का डर सामने खड़ा हो गया।
शनीजा के हाथ में भारतीय पासपोर्ट था, और उनके मासूम 8 साल के बेटी-बेटे के पास पाकिस्तानी पासपोर्ट।
बॉर्डर पर अधिकारी नियमों की किताबें खोलते रहे, और शनीजा की आंखों में बस एक ही सवाल तैर रहा था —
“मां के बिना बच्चे कहां जाएंगे?”
बेटी ने हाथ जोड़कर कहा, “हमें मां के बिना मत भेजो। मां के साथ रहना है।”
पर सरहद पर बने कानून के पत्थर दिल शायद इतनी मासूम पुकार सुनने के लिए बने ही नहीं थे।
जब सरहद ने तोड़ दिए दिल…
अटारी बॉर्डर पर उस दिन कोई ‘भारतीय’ या ‘पाकिस्तानी’ नहीं था।
बस मां थीं, बच्चे थे, बुजुर्ग थे, और हर आंख में एक ही सवाल —
“क्या सरहदें रिश्तों से बड़ी हो गई हैं?”
81 साल की एक बुजुर्ग महिला, जो दो महीने पहले अपने बेटे के पास भारत आई थीं, वापस जाते हुए फफक पड़ीं —
“पहलगाम में जो हुआ, वह गलत था… लेकिन दिलों को यूं तोड़ना भी कहां सही है?”
दिलों की लड़ाई, सरहदों के बीच फंसे लोग
यह केवल शनीजा या उनकी बेटी की कहानी नहीं है।
ये हर उस इंसान की दास्तां है जो प्यार में सरहदें भूल गया, लेकिन सियासत ने उसे उसकी पहचान याद दिला दी।
जहां एक ओर टेलीविजन पर हेडलाइन चमकती है — “भारत ने पाकिस्तानियों को निकाला”, वहीं जमीनी हकीकत में, मां-बेटी एक-दूसरे से लिपटी बिलख रही हैं।