आईएमटी रोजगार मेव किसान आंदोलन अब नए मोड़ पर है। जानिए क्यों किसानों का आंदोलन दो हिस्सों में बंट गया है, क्या हैं असली मांगें और कैसे प्रशासन व ग्रामीणों की भूमिका बन रही है चर्चा का विषय।
हरियाणा के नूंह जिले में चल रहा आईएमटी रोजगार मेव किसान आंदोलन अब तेजी से सुर्खियों में है। एक ओर जहां किसान अपने बकाया मुआवजे और अन्य अधिकारों के लिए सड़क पर हैं, वहीं दूसरी ओर स्थानीय ग्रामीणों के विरोध ने आंदोलन को दो ध्रुवों में बांट दिया है।
किसानों की मुख्य मांगें क्या हैं?
किसान आंदोलन का नेतृत्व कर रहे संगठनों का कहना है कि उन्हें उचित मुआवजा नहीं दिया गया, और जो कुछ दिया गया वो भी जबरन हलफनामा भरवाकर लिया गया। किसानों की मांग है कि पुराने एग्रीमेंट को रद्द किया जाए और पुनः बातचीत शुरू हो।
ग्रामीणों की शिकायतें
रविवार को स्थानीय ग्रामीणों का एक प्रतिनिधि मंडल उपायुक्त से मिला और ज्ञापन सौंपते हुए आरोप लगाया कि बाहरी किसान नेता आंदोलन को भटका रहे हैं और शांति भंग करना चाहते हैं। उनका कहना है कि यह आंदोलन अब केवल स्थानीय मुद्दा नहीं रह गया बल्कि इसे राजनीतिक रंग दिया जा रहा है।

धमकियों और आरोपों का दौर
किसान नेता रवि आजाद को जान से मारने और तेजाब फेंकने की धमकी मिलने पर पुलिस में शिकायत दी गई है। इस पर थाना प्रभारी ने आश्वासन दिया है कि उचित कानूनी कार्रवाई की जाएगी। वहीं आंदोलनकारी किसानों ने ज्ञापन सौंपने वालों को “समाज का गद्दार” बताया और कहा कि वे केवल अपना हक मांग रहे हैं।
प्रशासन की प्रतिक्रिया
उपायुक्त विश्राम कुमार मीणा ने साफ शब्दों में कहा है कि किसानों को आंदोलन छोड़कर क्षेत्रीय विकास पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा कि मुआवजे से जुड़े मामलों में अदालत का फैसला पहले ही हो चुका है, और अब उसका विरोध केवल विकास कार्यों में बाधा बन रहा है। प्रशासन की मंशा है कि स्थानीय युवाओं को स्किल्ड बनाया जाए ताकि उन्हें आईएमटी में रोजगार मिल सके।
क्यों उठ रहा है “बाहरी नेताओं” का मुद्दा?
आंदोलन में पंजाब, राजस्थान, यूपी और हरियाणा के अन्य जिलों से आए किसान नेताओं की मौजूदगी पर सवाल उठ रहे हैं। स्थानीय लोगों का मानना है कि इन बाहरी नेताओं की वजह से आंदोलन की दिशा बदल गई है, जबकि किसान नेताओं का कहना है कि वे पूरे देश में किसानों के लिए आवाज़ उठाते हैं और “बाहरी” कहना केवल राजनीति है।
अब तक क्या हुआ है?
मार्च से लेकर जुलाई तक प्रशासन और किसानों के बीच कई दौर की बातचीत हो चुकी है। लेकिन समाधान अब तक नहीं निकल पाया। सरकार की ओर से बार-बार यह कहा गया है कि जो मांगें वैध हैं, उन पर विचार हुआ है, लेकिन कोर्ट द्वारा तय मुआवजे पर दोबारा बातचीत संभव नहीं है।